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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


कैदी (कहानी) : मुंशी प्रेमचंद

अगर इस बीच में कोई ऐसा काम करूँ, जो तुम्हें बुरा मालूम हो तो तुम मुझे क्षमा करोगे न ?' आइवन ने विस्मयभरी आँखों से हेलेन के मुख की ओर देखा। उसका आशय उसकी समझ में न आया।
हेलेन डरी, आइवन कोई नयी आपत्ति तो नहीं खड़ी करना चाहता। आश्वासन के लिए अपने मुख को उसके आतुर अधारों के समीप ले जाकर बोली,'प्रेम का अभिनय करने में मुझे वह सबकुछ करना पड़ेगा, जिस पर
एकमात्र तुम्हारा ही अधिकार है। मैं डरती हूँ, कहीं तुम मुझ पर सन्देह न करने लगो।' आइवन ने उसे कर-पाश में लेकर कहा, 'यह असम्भव है हेलेन, विश्वास प्रेम की पहली सीढ़ी है।' अंतिम शब्द कहते-कहते उसकी आँखें झुक गयीं। इन शब्दों में उदारता का जो आदर्श था, वह उस पर पूरा उतरेगा या नहीं, वह यही सोचने लगा।
इसके तीन दिन पीछे नाटक का सूत्रापात हुआ। हेलेन अपने ऊपर पुलिस के निराधर संदेह की फरियाद लेकर रोमनाफ से मिली और उसे विश्वास दिलाया कि पुलिस के अधिकारी उससे केवल इसलिए असंतुष्ट हैं कि वह
उनके कलुषित प्रस्तावों को ठुकरा रही है। यह सत्य है कि विद्यालय में उसकी संगति कुछ उग्र युवकों से हो गयी थी; पर विद्यालय से निकलने के बाद उसका उनसे कोई सम्बन्ध नहीं है। रोमनाफ जितना चतुर था, उससे कहीं चतुर अपने को समझता था। अपने दस साल के अधिकारी जीवन में उसे किसी ऐसी रमणी से साबिका न पड़ा था, जिसने उसके ऊपर इतना विश्वास करके अपने को उसकी दया पर छोड़ दिया हो। किसी धन-लोलुप की भाँति सहसा यह धन-राशि देखकर उसकी आँखों पर परदा पड़ गया। अपनी समझ में तो वह हेलेन से उग्र युवकों के विषय में ऐसी बहुत-सी बातों का पता लगाकर फूला न समाया, जो खुफिया पुलिसवालों को बहुत सिर मारने पर भी ज्ञात न हो सकी थीं; पर इन बातों में मिथ्या का कितना मिश्रण है, वह न भाँप सका। इस आधा घंटे में एक युवती ने एक अनुभवी अफसर को अपने रूप की मदिरा से उन्मत्त कर दिया था।
जब हेलेन चलने लगी, तो रोमनाफ ने कुर्सी से खड़े होकर कहा, 'मुझे आशा है, यह हमारी आखिरी मुलाकात न होगी।'
हेलेन ने हाथ बढ़ाकर कहा, 'हुजूर ने जिस सौजन्य से मेरी विपत्ति-कथा सुनी है, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूँ।'
'कल आप तीसरे पहर यहीं चाय पियें।' रब्त-जब्त बढ़ने लगा।
हेलेन आकर रोज की बातें आइवन से कह सुनाती। 'रोमनाफ वास्तव में जितना बदनाम है, उतना बुरा नहीं। नहीं, वह बड़ा रसिक, संगीत और कला का प्रेमी और शील तथा विनय की मूर्ति है।'
इन थोड़े ही दिनों में हेलेन से उसकी घनिष्ठता हो गयी है और किसी अज्ञात रीति से नगर में पुलिस का अत्याचार कम होने लगा है। अन्त में वह निश्चित तिथि आयी। आइवन और हेलेन दिन-भर बैठे-बैठे
इसी प्रश्न पर विचार करते रहे। 

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